भागवत कथा श्रवण, संत दर्शन एवं सत्संग के लिए भगवत कृपा जरूरी – रामप्रसाद महाराज

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भीलवाड़ा-मूलचन्द पेसवानी
भगवान का नाम लेने से काम कभी नहीं अटकता है। हमेशा परमार्थ की भावना से कार्य करना चाहिए। भागवत रूपी अमृत हमे अमर भी कर देगा और निर्भय भी बना देगा जबकि स्वर्ग का अमृत अमर कर सकता लेकिन निर्भय नहीं बना सकता। देवताओं से भी ज्यादा भाग्यशाली भीलवाड़ावासी है जिन्हें भागवत रूपी अमृत मिला है।
ये विचार अन्तरराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय के वरिष्ठ संत रामप्रसादजी महाराज (बड़ौदा) ने सोमवार को भीलवाड़ा के महेश वाटिका में सोनी परिवार के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर कथा श्रवण कराते हुए व्यक्त किए। सुबह गायत्रीमंदिर से कथास्थल तक भव्य कलश एवं शोभायात्रा के साथ आयोजन का आगाज हुआ। व्यास पीठ पर भागवत स्थापित होने और उसकी विधिवत पूजा के बाद कथावाचक रामप्रसादजी महाराज ने विशाल पांडाल में मौजूद श्रद्धालुओं को भागवत श्रवण का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि सर्व कल्याण एवं सुख की कामना के साथ श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। भागवत कथा श्रवण का अवसर करोड़ो जन्मों का पुण्य उदय होने पर ही मिलता है। भागवत कथा श्रवण, संत दर्शन एवं सत्संग के लिए भगवान की कृपा जरूरी है इसके बिना अवसर नहीं मिलता। भागवत कथा सबसे पहले देवर्षि नारद ने सुनाई थी।
संत रामप्रसादजी महाराज ने कहा कि संसार मंे तीन प्रकार के दुःखी होते है। अपने दुःख के कारण जो दुःखी हो वह इंसान है एवं दूसरों के दुःख को देख दुःखी हो जाने वाला संत होता है। तीसरे प्रकार का दुःखी वह व्यक्ति होता है जो दूसरों के सुखी होने के कारण दुःखी रहता है, ऐसा व्यक्ति बनने से हमे बचना चाहिए।
संतश्री ने कहा कि जिंदगी में हमेशा दूसरे के काम आने की भावना रखनी चाहिए। ज्ञान का दान देना सबसे बड़ा सत्कर्म है। उन्होंने कहा कि दुनिया किसी को शांति से जीने नहीं देती। कोई अच्छा करता है तो कहते अमीरी प्रदर्शन कर रहा ओर कोई बचा कर चलता है तो कहते है कुछ नहीं करता। दुनिया खाए बिना रहे जाएगी पर कहे बिना नहीं रहेगी।
कथा के दौरान संत रामप्रसादजी महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण तभी सार्थक होगा जब हम आयोजन के इन सात दिनों में मन, वचन व कर्म से किसी को कष्ट नहीं पहुंचाए। मन, वचन व कर्म से हम किसी के लिए दुःख का कारण नहीं बने।
श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में पहले दिन कथा शुरू होने से लेकर अंत तक श्रद्धालु भक्तिरस में डूबे रहे। श्रीमद् भागवत कथा के विभिन्न प्रसंगों के वाचन के दौरान बीच-बीच में भजनों की गंगा भी प्रवाहित होती रही। जैसे ही व्यास पीठ से महाराजश्री भजन शुरू करते कई श्रद्धालु अपनी जगह खड़े होकर नृत्य करने लगते। भक्ति की धारा का प्रभाव ही था कि श्रद्धालुओं ने भजनों पर नृत्य का जमकर आनंद लिया। उन्होंने मनुष्य जन्म अनमोल रे, चलो जी वृन्दावन कर ले बांके बिहारी के दर्शन, संतो के दरबार में सदा जाते रहना आदि भजन गाए तो भी पांडाल में श्रद्धालु नृत्य करने लगे।
पूज्य संत रामप्रसादजी महाराज ने कथा के दौरान कई बार भीलवाड़ावासियों की भक्ति भावना की सराहना की। उन्होंने कहा कि जो भी भक्तगण कथा सुनने आए है वह अगले दिन अपने साथ एक जने को अवश्य कथा श्रवण को लाए इसका पुण्य भी उनको प्राप्त होगा।
श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ महोत्सव का आगाज सोमवार सुबह कलश एवं शोभायात्रा के साथ हुआ। कलश शोभायात्रा श्री गायत्री मंदिर से शुरू होकर कथास्थल महेश वाटिका तक पहुंची। कलश एवं शोभायात्रा संयोजक शिव नुवाल एवं अनिल न्याति के अनुसार शोभायात्रा में कथावाचक संत रामप्रसादजी महाराज के साथ श्रीमद् भागवत कथा की पौथी आयोजक परिवार के दिनेश सोनी ने अपने सिर पर धारण कर रखी थी। शोभायात्रा में मातृशक्ति ने 108 कलश सिर पर धारण किए हुए थे। शोभायात्रा में चुनरी पहने हुए सैकड़ो महिलाएं सिर पर कलश धारण करके चल रही थी। कई महिला भक्त नृत्य करते हुए कलश शोभायात्रा में साथ चल रही थी। बैण्ड पर गूंज रही भक्तिपूर्ण स्वरलहरियां भी शोभायात्रा का माहौल धर्ममय बना रही थी। कलश शोभायात्रा में समाज के विभिन्न वर्गो के लोग उत्साह के साथ शामिल हुए।
पहले दिन की कथा के अंत में पूज्य संत रामप्रसादजी महाराज के सानिध्य में व्यास पीठ की आरती करने वालों में सोनी परिवार के रमेशचन्द्र, अशोक एवं दिनेश सोनी के साथ उनके परिजन भी शामिल थे। संचालन जगदीशप्रसाद कोगटा ने किया।